परिचय
योग में मुद्राओं का अभ्यास अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न योगासन और प्राणायाम के साथ मुद्राओं का अभ्यास भी जरूरी बताया गया हैं। मुद्रा का अभ्यास करने से शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक लाभ मिलता हैं। योग के अंतर्गत कई तरह की मुद्राओं का वर्णन योग ग्रंथों में किया गया हैं। कुण्डलिनी जागरण में मुद्राएं महत्वपूर्ण मानी गई हैं।
मुद्रा का अर्थ और परिभाषा
मुद्रा शब्द का अर्थ हैं 'भाव-भंगिमा' (हावभाव) या चेहरें की स्थिति। मुद्रा को परिभाषित करते हुए कहा गया हैं कि आसन और प्राणायाम की सम्मिलित स्थिति मुद्रा कहलाती हैं, जो कि मन के विशेष भाव को भी प्रकट करती हैं। प्राचीन काल के साधु संत और योगी शरीर के अंदर मौजूद पंच तत्व अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल को संतुलित रखने के लिए योग मुद्राएं करते थे।
मुद्रा का महत्व
योग में कई तरह की मुद्राओं का वर्णन मिलता हैं। हमारा शरीर जो कि पंच तत्व अग्नि, वायु, आकाश,पृथ्वी और जल से मिलकर बना हुआ हैं। उसे स्वस्थ रखने के लिए इन तत्वों को भी नियंत्रण में रखना जरुरी हैं। योग मुद्राओं के द्वारा हम इन पंच तत्वों को नियंत्रण में रख सकते हैं। इन तत्वों को हाथ की उंगलियों व अंगूठे के द्वारा नियंत्रण में रखा जा सकता हैं।
मुद्रा का उद्देश्य
योग अभ्यास के दौरान मुद्रा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान हैं। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए विभिन्न योग आसन और प्राणायाम के साथ साथ इन मुद्राओं का अभ्यास करना भी बहुत जरूरी हैं। योग मुद्रा का अभ्यास करने से शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक लाभ होता हैं। योग मुद्राओं के अभ्यास का मुख्य उद्देश्य मानसिक शांति प्रदान करना और व्यक्ति को स्वस्थ रखना हैं।
मुद्रा अभ्यास से पूर्व निर्देश
- अभ्यास से पूर्व आसन, प्राणायाम और ध्यान करे।
- बंधों का अभ्यास ठीक प्रकार से कर लेना चाहिए।
- स्थान स्वच्छ, शांत, हवादार होना चाहिए।
- सरल मुद्राओं से धीरे धीरे कठिन की ओर बढ़े।
- मुद्राओं का अभ्यास बसंत ऋतु से आरंभ करें।
- सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय अभ्यास करें।
- अभ्यास मार्गदर्शक के निर्देशन में ही शुरू करें।
- अंगूठा (थम्ब ) - अग्नि तत्व
- तर्जनी (इंडेक्स फिंगर ) - वायु तत्व
- मध्यमा (मिडिल फिंगर ) - आकाश तत्व
- अनामिका (रिंग फिंगर ) - जल तत्व
- कनिष्ठा (लिटिल फिंगर ) - पृथ्वी तत्व
- हस्त मुद्राएँ
- मुख मुद्राएँ
- काया मुद्राएँ
- बन्ध मुद्राएँ
- आसन मुद्राएँ
हस्त मुद्राएं
हस्त मुद्रा, योग का हिस्सा हैं और इन्हें करने से शरीर को कई तरह के फ़ायदे होते हैं। हस्त मुद्राओं का इस्तेमाल ध्यान और प्राणायाम के अभ्यास में भी किया जाता हैं। कुछ हस्त मुद्राओं के प्रकार निम्नलिखित हैं
ज्ञान मुद्रा
विधि- अंगूठे व तर्जनी अंगुली के अग्रभागों को परस्पर मिलाने और शेष को सीधा रखने से यह मुद्रा बनती हैं।
लाभ- धारणा एवं ध्यानात्मक स्थिति का विकास होता हैं, एकाग्रता बढ़ती हैं एवं नकारात्मक विचार कम आते हैं इस मुद्रा से स्मरण शक्ति बढ़ती हैं इसलिए इसके निरन्तर अभ्यास से बच्चे मेधावी व ओजस्वी बनते हैं। स्मृति व ज्ञान में सुधार होता हैं और यह अनिद्रा को भी रोकती हैं।
पृथ्वी मुद्रा
विधि- अनामिका अंगुली और अँगूठे को मिलाकर पृथ्वी मुद्रा बनाई जाती हैं।
लाभ- शरीर में स्फूर्ति, कांति एवं तेज आता हैं। दुर्बल व्यक्ति मोटा बन सकता हैं, वजन बढ़ता हैं, जीवनी शक्ति का विकास होता हैं। यह मुद्रा पाचन क्रिया को ठीक करती हैं, सात्विक गुणों का विकास करती हैं, दिमाग में शांति लाती हैं तथा विटामिन की कमी को भी दूर करती हैं।
सूर्य मुद्रा
विधि- अनामिका अंगुली को अँगूठे के मूल पर लगाकर अँगूठे से दबाने से यह मुद्रा बनती हैं।
लाभ- शरीर संतुलित होता हैं, वजन घटता हैं, मोटापा कम होता हैं। शरीर में उष्णता की वृद्धि, तनाव में कमी,शरीर की शक्ति का विकास, कॉलेस्ट्रोल कम होता हैं। यह मुद्रा मधुमेह, यकृत के दोषों को दूर करती हैं।
सावधानी- गर्मी में ज्यादा समय तक नहीं करना चाहिए।
वायु मुद्रा
विधि- तर्जनी को अँगूठे के मूल में लगाकर अँगूठे को हल्का दबाने से यह मुद्रा बनती हैं।
लाभ- वायु संबंधी समस्त विकार, गैस्ट्रिक, गठिया, संधिवात, आर्थराइटिस, पक्षाघात, सायटिका, घुटने के दर्द जैसे रोगों को दूर करने में यह मुद्रा सहायक होती हैं।
सावधानी- इस मुद्रा का प्रयोग पीड़ित व्यक्ति के स्वस्थ होने तक ही करें साथ में प्राण मुद्रा का प्रयोग भी करे।
प्राण मुद्रा
विधि- अनामिका, कनिष्ठा और अंगूठे को मिलाने से यह मुद्रा बनती हैं।
लाभ- शरीर में आलस्य को दूर करने में सहायक हैं। प्राण शक्ति का पूरे शरीर में संचार होता हैं। कमजोर व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप में शक्तिशाली बनता हैं। आँखों से संबंधित सभी प्रकार की बीमारियां दूर होती हैं। नियमित अभ्यास से चश्मा भी उतर सकता हैं।
अपान मुद्रा
विधि- मध्यमा तथा अनामिका अँगुलियों को अँगूठे के अग्रभाग से लगाने से यह मुद्रा बनती हैं।
लाभ- शरीर और नाड़ी की शुद्धि तथा कब्ज दूर होता हैं। मल-दोष नष्ट होते हैं, बवासीर दूर होता हैं। वायु-विकार, मधुमेह, मूत्र अवरोध, गुर्दों के दोष, दाँतों के दोष दूर होते हैं। पेट के लिए उपयोगी हैं तथा यह मुद्रा शरीर में पसीना भी लाती हैं।
मुख मुद्राएं
मुख मुद्रा का मतलब है योग की वे मुद्राएं जो चेहरे के द्वारा बनाई जाती हैं योग में मुख मुद्राओं के कई प्रकार बताए गए हैं
शाम्भवी मुद्रा
विधि- भौंहों के मध्य जहां पर बिंदी लगाई जाती हैं। उस जगह ध्यान लगाकर देखने से यह मुद्रा बनती हैं।
लाभ- यह मुद्रा चेतना के उच्चतम स्तर तक पहुँचने में मदद करती हैं। मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ाती हैं। आँखों की मांसपेशियों को को मजबूती प्रदान करती हैं।
सावधानी- ग्लूकोमा या नेत्र संबंधी समस्या होने पर इस मुद्रा को नहीं करना चाहिए।
काकी मुद्रा
विधि- काकी मुद्रा के लिए दोनों होठों की चोंच बनाकर मुंह से सांस लेते हैं। और कुछ देर अंतः कुंभक करने के पश्चात उस सांस को छोड़ देते हैं।
लाभ- यह मुद्रा करने से श्वसन प्रणाली मजबूत होती हैं त्वचा में निखार आता हैं करती हैं।।
सावधानी- रक्तचाप की कमी और जुकाम या खांसी की समस्या होने पर इस मुद्रा को नहीं करना चाहिए।