Thursday, January 2, 2025

Unit I - Chapter 1.2 - योग की परिभाषाएँ

महर्षि पतंजलि के अनुसार

अथ योगानुशासनम्।।  ( पातंजल योग सूत्र /1.1 ) 

महर्षि पतंजलि के अनुसार अनुशासन में रहना और पूर्ण रुप से नियमों का पालन करना योग हैं। क्योंकि जीवन मे अनुशासन का महत्वपूर्ण स्थान हैं और उसके द्वारा ही जीवन को उसके लक्ष्य ही ओर अग्रसर कर सकते हैं।

महर्षि पतंजलि के अनुसार

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः ।।  ( पातंजल योग सूत्र /1.2 ) 

महर्षि पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियों का निरोध हो जाना ही योग हैं। अर्थात मन को एक जगह रोकना या मन की एकाग्र अवस्था को प्राप्त करना ही योग हैं।

श्रीमद् भगवद्गीता के अनुसार

समत्वं योग उच्यते ।।  ( श्रीमद् भगवद्गीता /2.48 ) 

श्रीमद् भगवद्गीता के अनुसार सफलता-असफलता और सुख-दु:ख से विचलित हुए बिना कोई व्यक्ति जब निष्काम भाव से कर्म करता हैं, तो वह योग हैं। समबुद्धि या मन को संतुलित रखकर व्यवहार करना ही योग हैं।

श्रीमद् भगवद्गीता के अनुसार

योगः कर्मसु कौशलम् ।। ( श्रीमद् भगवद्गीता /2.50 ) 

श्रीमद् भगवद्गीता के अनुसार कर्मो में कुशलता लाना योग हैं। अहंकार रहित प्रमाणिकता से कुशलता और कौशल के साथ कर्म करना योग हैं। अर्थात शरीर के साथ मन से भी कर्म करना। यह योग मनुष्य को बंधनों से मुक्त करता हैं।

महर्षि व्यास के अनुसार

योगः समाधिः।। 

महर्षि व्यास के अनुसार जब साधक अपने लक्ष्य के ध्यान मे पूरी तरह से तल्लीन हो जाता हैं और उसे अपने स्वयं का भी ज्ञान नहीं रहता हैं। तो उसे समाधि कहा जाता हैं। अर्थात समाधि ही योग हैं।

याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार

संयोगो योग इत्युक्तौ जीवात्मा परमात्मनौः।।

याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार योग करने से चित्त में बाहर से तीनों गुणों का परिणाम होना बन्द हो जाता हैं तथा पुरूष शुद्ध ईश्वर में अवस्थित हो जाता हैं। अर्थात जीवात्मा व परमात्मा के संयोग की अवस्था का नाम ही योग हैं।

योग सूत्र के अनुसार

सर्वचिन्ता परित्यागो निश्चिन्तो योग उच्यते।।

योग सूत्र के अनुसार मानव जीवन की सोई हुई शक्तियों को जगाकर जीवन को जीने का प्रयास करना योग हैं। अर्थात जीवन में अच्छे कार्य करते हुए भगवान को प्राप्त करना योग कहलाता हैं।

गुरू ग्रंथ साहिब के अनुसार

निःस्वार्थ कर्म करना योग है।

सिक्खों के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब के अनुसार निःस्वार्थ भावना से कर्म करना ही सच्चे धर्म का पालन हैं और यही वास्तविक योग कहा गया हैं।

पंडित श्रीराम शर्मा के अनुसार

जीवन जीने की कला ही योग हैं।

आचार्य श्रीराम शर्मा जी के अनुसार जीवन जीने की कला का नाम योग हैं। इसका मतलब हैं कि हमें जीवन को बिना किसी चिंता के और संतुष्ट होकर जीना चाहिए।

ऋषि वशिष्ठ के अनुसार

संसार सागर से पार होने की युक्ति योग हैं।

ऋषि वशिष्ठ के अनुसार इस संसार सागर को पार करने की युक्ति योग हैं। अर्थात इस दुनिया की मोह माया में उलझे बिना अपना कर्म करते हुए इस दुनिया मे पुनः न आना वास्तविकता में योग हैं।

योगी अरविंद के अनुसार

जीवन में ही ईश्वर को प्राप्त करना योग हैं।

योगी अरविंद के अनुसार मानवीय जीवन की सुप्त शक्तियों को जागृत करके जीवन जीने का सुव्यवस्थित प्रयास करना ही योग हैं। अर्थात जीवन को बिना नष्ट किए अच्छे कर्म करते हुए भगवान की प्राप्ति करना योग कहलाता हैं।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार

मानव का सर्वांगीण विकास योग हैं।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, बौद्धिक, नैतिक और आध्यात्मिक रूप से परिपूर्ण मानव का सर्वांगीण विकास होना और उसके द्वारा ही ईश्वर जगत का बोध होकर स्वयं को जानना योग हैं।

स्वामी शिवानंद के अनुसार

जीवन मे साधना करना योग हैं।

स्वामी शिवानंद के अनुसार योग एक साधना का नाम हैं जिसके द्वारा जीवात्मा तथा परमात्मा की एकता का अनुभव होता हैं एवं निरंतर प्रयास से जीवात्मा और परमात्मा एक हो जाते हैं।

स्वामी कुवलयानंद के अनुसार

योग मानवता के लिए संदेश हैं।

स्वामी कुवलयानंद के अनुसार योग मानवता के लिए संदेश हैं। मनुष्य कोई भी देश का हो, धर्म का हो, जाति का हो वह योग करके शारीरिक और मानसिक विकास के साथ अपना आत्मिक विकास करके मानव कल्याण कर सकता हैं।

स्वामी सत्यानंद के अनुसार

योग शरीर और मन को संतुलित करता हैं।

स्वामी सत्यानंद के अनुसार योग, शरीर और मन को संतुलित करने तथा उनके कार्यों को तेजस्वी बनाने कि एक विधि हैं। योग से कार्यो को बेहतर करने में सहायता मिलती हैं।

काका कालेलकर के अनुसार

योग व्यवहार की एक कला हैं।

काका कालेलकर के अनुसार योग व्यवहार की एक कला हैं। महर्षि पतंजलि के यम और नियम को अपनाकर सामाजिक जीवन में सभी से बेहतर व्यवहार करना सीख सकते हैं। साथ ही स्वस्थ और सुव्यवस्थित जीवन का निर्माण भी किया जा सकता हैं।

रांगेय राघव के अनुसार

शिव और शक्ति का मिलन योग हैं।

रांगेय राघव के अनुसार शिव और शक्ति का मिलन योग हैं। अर्थात आध्यात्मिक जीवन में मन शिव तथा प्राण शक्ति के प्रतिरूप हैं। हठयोग के ग्रंथो में इन दोनों शक्तियों का उल्लेख इड़ा और पिंगला के रूप में किया गया हैं।




No comments:

Post a Comment

All Mock Test Answer

Mock Test Answer 01 https://docs.google.com/forms/ d/e/ 1FAIpQLSe4NsIo7p7PzJdlQd0Y_ 1p0Jr_m7AAPslz2vxT3ismBj3lrUw/ viewscore?viewscore= AE0z...