Tuesday, July 1, 2025

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Tuesday, May 20, 2025

Unit I- Chapter 4- योग प्रथाओं परिचय

 परिचय

योग प्रथाएं भारतीय ज्ञान की हजारों वर्ष पुरानी शैली हैं। हजारों मूर्तियाँ इसके संबंध में योग की स्थिति में अभी तक प्रमाणिक रूप में हैं। भगवत गीता में अनेकों बार योग शब्द का उल्लेख किया गया हैं। योग के साक्ष्य सिंधु घाटी सभ्यता तथा बौद्ध एवं जैन दर्शन में किसी न किसी रूप में प्राप्त हुए हैं। योग के प्रसिद्ध ग्रंथों में महर्षि पतंजलि द्वारा रचित योगसूत्र महत्वपूर्ण योग प्रथा का परिचय हैं।

योग प्रथाओं का उद्देश्य

योग प्रथाओं का एकमात्र उद्देश्य आत्मा-परमात्मा के मिलन द्वारा समाधि की अवस्था को प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त करना हैं। इसी को जानकर कई योग साधक साधना द्वारा मोक्ष, मुक्ति के मार्ग को प्राप्त कर लेते हैं। योग के अन्तर्गत यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि को साधक चरणबद्ध तरीके से पार करता हुआ कैवल्य अर्थात मोक्ष को प्राप्त कर जाता हैं।

योग प्रथाओं के प्रकार

योग अनादी काल से ही प्रचलन में रहा हैं। इस कारण योग की कई प्रथाएं प्रचलन में रही लेकिन मुख्यतः योग की चार प्रथाएं मानी जाती हैं -

1. भक्ति योग

2. ज्ञान योग

3. कर्म योग

4. राज योग

योग की अन्य प्रचलित प्रथाएं -

हठ योग

तंत्र योग

मंत्र योग

कुण्डलिनी योग

Tuesday, April 29, 2025

Unit II- Chapter 4.2- मुद्रा की अवधारणा

परिचय

योग में मुद्राओं का अभ्यास अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न योगासन और प्राणायाम के साथ मुद्राओं का अभ्यास भी जरूरी बताया गया हैं। मुद्रा का अभ्यास करने से शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक लाभ मिलता हैं। योग के अंतर्गत कई तरह की मुद्राओं का वर्णन योग ग्रंथों में किया गया हैं। कुण्डलिनी जागरण में मुद्राएं महत्वपूर्ण मानी गई हैं।

मुद्रा का अर्थ और परिभाषा

मुद्रा शब्द का अर्थ हैं 'भाव-भंगिमा' (हावभाव) या चेहरें की स्थिति। मुद्रा को परिभाषित करते हुए कहा गया हैं कि आसन और प्राणायाम की सम्मिलित स्थिति मुद्रा कहलाती हैं, जो कि मन के विशेष भाव को भी प्रकट करती हैं। प्राचीन काल के साधु संत और योगी शरीर के अंदर मौजूद पंच तत्व अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल को संतुलित रखने के लिए योग मुद्राएं करते थे।

मुद्रा का महत्व

योग में कई तरह की मुद्राओं का वर्णन मिलता हैं। हमारा शरीर जो कि पंच तत्व अग्नि, वायु, आकाश,पृथ्वी और जल से मिलकर बना हुआ हैं। उसे स्वस्थ रखने के लिए इन तत्वों को भी नियंत्रण में रखना जरुरी हैं। योग मुद्राओं के द्वारा हम इन पंच तत्वों को नियंत्रण में रख सकते हैं। इन तत्वों को हाथ की उंगलियों व अंगूठे के द्वारा नियंत्रण में रखा जा सकता हैं।

मुद्रा का उद्देश्य

योग अभ्यास के दौरान मुद्रा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान हैं। मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए विभिन्न योग आसन और प्राणायाम के साथ साथ इन मुद्राओं का अभ्यास करना भी बहुत जरूरी हैं। योग मुद्रा का अभ्यास करने से शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक लाभ होता हैं। योग मुद्राओं के अभ्यास का मुख्य उद्देश्य मानसिक शांति प्रदान करना और व्यक्ति को स्वस्थ रखना हैं।

मुद्रा अभ्यास से पूर्व निर्देश

  • अभ्यास से पूर्व आसन, प्राणायाम और ध्यान करे।
  • बंधों का अभ्यास ठीक प्रकार से कर लेना चाहिए।
  • स्थान स्वच्छ, शांत, हवादार होना चाहिए।
  • सरल मुद्राओं से धीरे धीरे कठिन की ओर बढ़े।
  • मुद्राओं का अभ्यास बसंत ऋतु से आरंभ करें।
  • सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय अभ्यास करें।
  • अभ्यास मार्गदर्शक के निर्देशन में ही शुरू करें।
पंच तत्व का शरीर से संबंध

  • अंगूठा (थम्ब ) - अग्नि तत्व
  • तर्जनी (इंडेक्स फिंगर ) - वायु तत्व
  • मध्यमा (मिडिल फिंगर ) - आकाश तत्व
  • अनामिका (रिंग फिंगर ) - जल तत्व
  • कनिष्ठा (लिटिल फिंगर ) - पृथ्वी तत्व
मुद्रा के प्रकार

योग ग्रंथ हठ प्रदीपिका में मुद्रा के 10 और घेरंड संहिता में 25 प्रकार बताए हैं जिन्हें 5 भागों में बाँटा गया हैं-
  • हस्त मुद्राएँ
  • मुख मुद्राएँ
  • काया मुद्राएँ
  • बन्ध मुद्राएँ
  • आसन मुद्राएँ

हस्त मुद्राएं 

हस्त मुद्रा, योग का हिस्सा हैं और इन्हें करने से शरीर को कई तरह के फ़ायदे होते हैं। हस्त मुद्राओं का इस्तेमाल ध्यान और प्राणायाम के अभ्यास में भी किया जाता हैं। कुछ हस्त मुद्राओं के प्रकार निम्नलिखित हैं 

ज्ञान मुद्रा

विधि- अंगूठे व तर्जनी अंगुली के अग्रभागों को परस्पर मिलाने और शेष को सीधा रखने से यह मुद्रा बनती हैं।

लाभ- धारणा एवं ध्यानात्मक स्थिति का विकास होता हैं, एकाग्रता बढ़ती हैं एवं नकारात्मक विचार कम आते हैं इस मुद्रा से स्मरण शक्ति बढ़ती हैं इसलिए इसके निरन्तर अभ्यास से बच्चे मेधावी व ओजस्वी बनते हैं। स्मृति व ज्ञान में सुधार होता हैं और यह अनिद्रा को भी रोकती हैं।

पृथ्वी मुद्रा

विधि- अनामिका अंगुली और अँगूठे को मिलाकर पृथ्वी मुद्रा बनाई जाती हैं।

लाभ- शरीर में स्फूर्ति, कांति एवं तेज आता हैं। दुर्बल व्यक्ति मोटा बन सकता हैं, वजन बढ़ता हैं, जीवनी शक्ति का विकास होता हैं। यह मुद्रा पाचन क्रिया को ठीक करती हैं, सात्विक गुणों का विकास करती हैं, दिमाग में शांति लाती हैं तथा विटामिन की कमी को भी दूर करती हैं।

सूर्य मुद्रा

विधि- अनामिका अंगुली को अँगूठे के मूल पर लगाकर अँगूठे से दबाने से यह मुद्रा बनती हैं।

लाभ- शरीर संतुलित होता हैं, वजन घटता हैं, मोटापा कम होता हैं। शरीर में उष्णता की वृद्धि, तनाव में कमी,शरीर की शक्ति का विकास, कॉलेस्ट्रोल कम होता हैं। यह मुद्रा मधुमेह, यकृत के दोषों को दूर करती हैं।

सावधानी- गर्मी में ज्यादा समय तक नहीं करना चाहिए।

वायु मुद्रा

विधि- तर्जनी को अँगूठे के मूल में लगाकर अँगूठे को हल्का दबाने से यह मुद्रा बनती हैं।

लाभ- वायु संबंधी समस्त विकार, गैस्ट्रिक, गठिया, संधिवात, आर्थराइटिस, पक्षाघात, सायटिका, घुटने के दर्द जैसे रोगों को दूर करने में यह मुद्रा सहायक होती हैं।

सावधानी- इस मुद्रा का प्रयोग पीड़ित व्यक्ति के स्वस्थ होने तक ही करें साथ में प्राण मुद्रा का प्रयोग भी करे।

प्राण मुद्रा

विधि- अनामिका, कनिष्ठा और अंगूठे को मिलाने से यह मुद्रा बनती हैं।

लाभ- शरीर में आलस्य को दूर करने में सहायक हैं। प्राण शक्ति का पूरे शरीर में संचार होता हैं। कमजोर व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप में शक्तिशाली बनता हैं। आँखों से संबंधित सभी प्रकार की बीमारियां दूर होती हैं। नियमित अभ्यास से चश्मा भी उतर सकता हैं।

अपान मुद्रा

विधि- मध्यमा तथा अनामिका अँगुलियों को अँगूठे के अग्रभाग से लगाने से यह मुद्रा बनती हैं।

लाभ- शरीर और नाड़ी की शुद्धि तथा कब्ज दूर होता हैं। मल-दोष नष्ट होते हैं, बवासीर दूर होता हैं। वायु-विकार, मधुमेह, मूत्र अवरोध, गुर्दों के दोष, दाँतों के दोष दूर होते हैं। पेट के लिए उपयोगी हैं तथा यह मुद्रा शरीर में पसीना भी लाती हैं।

मुख मुद्राएं 

मुख मुद्रा का मतलब है योग की वे मुद्राएं जो चेहरे के द्वारा बनाई जाती हैं योग में मुख मुद्राओं के कई प्रकार बताए गए हैं

शाम्भवी मुद्रा

विधि- भौंहों के मध्य जहां पर बिंदी लगाई जाती हैं। उस जगह ध्यान लगाकर देखने से यह मुद्रा बनती हैं।

लाभ- यह मुद्रा चेतना के उच्चतम स्तर तक पहुँचने में मदद करती हैं। मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ाती हैं। आँखों की मांसपेशियों को को मजबूती प्रदान करती हैं।

सावधानी- ग्लूकोमा या नेत्र संबंधी समस्या होने पर इस मुद्रा को नहीं करना चाहिए।

काकी मुद्रा

विधि- काकी मुद्रा के लिए दोनों होठों की चोंच बनाकर मुंह से सांस लेते हैं। और कुछ देर अंतः कुंभक करने के पश्चात उस सांस को छोड़ देते हैं।

लाभ- यह मुद्रा करने से श्वसन प्रणाली मजबूत होती हैं त्वचा में निखार आता हैं करती हैं।

सावधानी- रक्तचाप की कमी और जुकाम या खांसी की समस्या होने पर इस मुद्रा को नहीं करना चाहिए।



Wednesday, March 5, 2025

Unit III - Chapter 5 - ॐ ध्यान

परिचय

पौराणिक कथाओं के अनुसार ॐ ब्रह्मा ( निर्माता ) , विष्णु ( रक्षक ) और शिव ( मुक्तिदाता ) का प्रतीक हैं“ॐ ” के ध्यान से हमारे भीतर परमात्मा की दैवीय ऊर्जा शक्ति का विकास होता हैं। ॐ की ध्वनि को बीजमंत्र या ब्रह्मांड की प्रथम ध्वनी भी माना जाता हैं। इसलिए ॐ का ध्यान कर हम प्रकृति के साथ एक होकर आत्मा को परमात्मा से जोड़ कर मोक्ष प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं।

ॐ ध्यान का उद्देश्य

ॐ ध्यान का उद्देश्य ही मोक्ष प्राप्त करना हैं। जीवन से मुक्त होकर मोक्ष की खोज कर ईश्वर की अनंत चेतना में विलीन हो जाना और मृत्यु भय से मुक्त होकर जीवन का आनंद लेते हुए जीना ही वास्तविक जीवन हैं। ॐ ध्यान के माध्यम से शरीर और मन को समझना आसान हैं। ॐ ध्यान द्वारा व्यक्ति अपने केंद्र में स्थिर होकर अपनी आत्म शक्ति को पहचान कर अनन्त गहराइयों में खो जाता हैं।

ॐ ध्यान का महत्व

ॐ ध्यान में ॐ की ध्वनि व्यक्ति की आत्मा में गहराई से पहुंचती हैं। जिससे उसकी चेतना पर एक अद्भुत प्रभाव पड़ता हैं। ॐ शब्द की प्रतिध्वनि से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शांति मिलती हैं। ॐ शब्द सुनने या उच्चारित करने से भावनात्मक शांति का अनुभव होने लगता हैं। ॐ की ध्वनि यौगिक परिभाषा के मुताबिक अ,उ और म अक्षरों से मिलकर बनी हैं।

ॐ ध्यान का प्रथम चरण

सर्वप्रथम ध्यान मुद्रा में बैठकर। शरीर को सीधा रखे आंखों को बंद कर हाथों को ज्ञान मुद्रा में घुटनों पर रखे और ॐ का उच्च स्वर में उच्चारण करे। ॐ शब्द का बार-बार उच्चारण करते जाना चाहिए। ॐ ध्वनि की तरंगों को शरीर के साथ-साथ मन को भी प्रभावित करना चाहिए और केवल मन ही नहीं बल्कि संपूर्ण वातावरण ॐ की ध्वनि से परिपूर्ण हो गया हो ऐसा आभास होना चाहिए।

ॐ ध्यान का द्वितीय चरण

इस प्रक्रिया में मौन रहकर केवल मानसिक रूप से ॐ शब्द को दोहराते हुए ॐ जप करना चाहिए। यह मन को शांत करता हैं। पहले चरण के नियमित अभ्यास करने से यह प्रक्रिया करने में आसानी होती हैं और मानसिक रूप से जप करना आसान हो जाता हैं। मानसिक जप के दौरान हमारा शरीर भी ॐ की ध्वनि से परिपूर्ण होने लगता हैं। और हमारे अंदर एकाग्रता की स्थिति प्राप्त हो जाती हैं।

ॐ ध्यान का तृतीय चरण

इस प्रक्रिया में शरीर और मन दोनों का उपयोग नहीं होता हैं। केवल साधरण रूप से ॐ का श्रवण किया जाता हैं। शारीरिक रूप से और मानसिक रूप से ॐ के जप के बाद, ॐ की ध्वनि सुनना बहुत सरल हो जाता हैं जो व्यक्ति के हृदय से आती हैं। ऐसा प्रतीत होता हैं कि ध्वनि स्वयं से निकल रही हैं। इसे अजपा जप भी कहा जाता हैं। इस ध्यान के लिए धैर्य और अभ्यास की आवश्यकता होती हैं।

ॐ ध्यान के लाभ

ॐ ध्यान एक महत्त्वपूर्ण योगिक अभ्यास हैं। जो कि हमें प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अनेक लाभ प्रदान करता हैं। यह न केवल मानसिक समस्याओं को नियंत्रित करने में सहायता प्रदान करता हैं बल्कि आध्यात्मिक अनुभव के सर्वोच्च शिखर तक पहुँचने में भी सहायता करता हैं। नकारात्मक भावनाएँ जैसे भय, क्रोध, अवसाद, तनाव, घबराहट, चिंता इत्यादि को कम कर एकाग्रता बढ़ाता हैं।

ॐ ध्यान की सावधानियां

  • ॐ ध्यान में ॐ का उच्चारण सही करें।
  • ॐ ध्यान मानसिक रूप से करें।
  • ॐ ध्यान आध्यात्मिक रूप से भी करें।
  • ॐ ध्यान आसन पर बैठकर करें।
  • ॐ ध्यान एकांत और शांति से करें।
  • ॐ ध्यान के दौरान कोई शारीरिक गतिविधि न करें।
  • ॐ ध्यान का समय धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।

Tuesday, March 4, 2025

Unit III - Chapter 4 - श्वास ध्यान

परिचय

श्वास ध्यान जिसमें जागरूकता और शांति की स्थिति प्राप्त करने के लिए अपनी सांस का उपयोग किया जाता हैं। जो कई ध्यान की प्रथाओं का केंद्र बिंदु मानी जाती हैं। अन्य ध्यान तकनीक जिनके लिए दृश्य या मंत्र की आवश्यकता होती हैं। श्वास ध्यान पूरी तरह से स्वयं के सांस लेने के तरीके पर निर्भर करता हैं। यही सरलता प्रारंभिक श्वास ध्यान को सरल बनाने में मदद करती हैं।

श्वास ध्यान का उद्देश्य

श्वास ध्यान का उद्देश्य श्वास के तरीके को बदलना या नियंत्रित करना नहीं बल्कि इसका निरीक्षण करना हैं। यह मन को ध्यान से हटाने वाले विचारों को रोकता हैं और स्वयं की सांसों पर चिंतन करता हैं। यह अभ्यास तनाव से राहत दिलाकर हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर करता हैं। साथ ही जीवन का समग्र कल्याण करने में सहायता प्रदान करता हैं।

श्वास ध्यान का महत्व

कुछ आसान से तरीकों के साथ शांति के क्षणों का निर्माण करते हुए श्वास ध्यान तकनीक को जीवन में शामिल किया जा सकता हैं। इसके नियमित अभ्यास से हमें ध्यान केंद्रित करने और बेहतर स्वास्थ्य प्राप्त करने में मदद मिल सकती हैं। क्योंकि श्वास ही हमारे शरीर में आंतरिक और बाह्य रूप से लगातार आवागमन करती रहती हैं और हमें जीवित रखती हैं।

श्वास ध्यान के चरण

श्वास ध्यान अभ्यास के माध्यम से हम अपनी सांसों के साथ गहरा संबंध बनाकर अपनी बौद्धिक क्षमता का विकास कर सकते हैं साथ ही यह हमारी आंतरिक शांति को बल देता हैं। श्वास ध्यान को शुरू करने से पहले प्रत्येक साँस को एक निश्चित संख्या तक गिनने से प्रारंभ किया जा सकता हैं साथ ही अन्य चरणों को भी ध्यान के दौरान महत्वपूर्ण माना जा सकता हैं जो निम्नलिखित हैं -

1. शांत स्थान

श्वास ध्यान करने के लिए एक शांत जगह का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं। ऐसी जगह चुनें जहां आप बिना किसी परेशानी के आराम से बैठ सकें या लेट सकें। अगर आप बिना किसी बाधा के ध्यान करने में सक्षम होना चाहते हैं तो हमेशा ऐसी जगह का चयन करना उचित होगा जो एकदम शांत हो और किसी भी प्रकार का व्यवधान न हो ताकि ध्यान करते समय मन केवल श्वास पर रहे।

2. आरामदायक स्थिति

अपने पैरों को ज़मीन पर सीधे करके एक कुर्सी पर बैठ सकते हैं, एक तकिये पर क्रॉस-लेग करके बैठें या एक समतल जगह पर लेट जाएं। सुनिश्चित करें कि आपकी रीढ़ सीधी हो। सांस के अच्छे प्रवाह को बढ़ाने के लिए आराम से अपनी भुजाओं को गोद में या अपने बगल के आसपास में धीरे से रख ले। इस स्थिति में हमेशा अपने शरीर को स्थिर रखने का प्रयास करना चाहिए।

3. आंखें बंद हो

आप अपनी आँखे कोमलता से बंद करे और ध्यान को अपने अंदर की ओर ले जाकर अपने शरीर और मस्तिष्क में क्या चल रहा है उस पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करना चाहिए। यह अभ्यास विचारों की गति को कम करता हैं। यदि आप चाहें तो अपनी आँखों को नीचे करके या अपने सामने किसी बिंदु पर धीरे से ध्यान केंद्रित करे या अपनी आँखों को भी बंद कर सकते हैं।

4. सांसों की गति पर ध्यान

अपनी सांसों की प्राकृतिक गति को बदलने की कोशिश किए बिना अपना ध्यान अपनी सांस पर केंद्रित करें। हवा की अनुभूति पर ध्यान दें। जब यह आपके नासिका छिद्रों से प्रवेश करती है तो आपके फेफड़ों को भरती हैं और जब आप साँस छोड़ते हैं तो यह फेफड़ों को खाली करती हैं। सांस लेते समय हवा की ठंडक और सांस छोड़ते समय उसकी गर्माहट को महसूस भी किया जा सकता हैं।

5. विचारों से बचे

ध्यान करते समय आपका मन भटकना स्वाभाविक हैं। इसलिए मन में आने वाले विचारों से बचे। यह ध्यान करने वाले नए व्यक्तियों में होना भी निश्चित हैं लेकिन जब भी आपको ऐसा लगे कि आपका ध्यान भटक गया है तो धीरे से इसे स्वीकार करें और अपना ध्यान वापस अपनी सांसों पर ले आए। यह आपके ध्यान को केंद्रित करने और उपस्थित रहने की क्षमता को मजबूत कर सकता हैं।

6. अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाए

श्वास ध्यान को एक निश्चित समय से शुरू करें लगभग पांच मिनट और प्रतिदिन धीरे-धीरे कुछ समय को बढ़ाते जाए। क्योंकि आप सांस ध्यान करते है तो स्वयं के साथ अधिक सहज हो सकते हैं। समय के साथ अपने अभ्यास को स्वाभाविक रूप से गहरा होने दें। श्वास ध्यान करने में किसी भी प्रकार की जल्दी न करे प्रतिदिन कुछ-कुछ समय श्वास ध्यान अभ्यास के लिए क्षमता अनुसार बढ़ाते जाए।

7. ध्यान समाप्ति आनंद से

जब आप अपना ध्यान समाप्त करने के लिए तैयार हों जाए तो धीरे-धीरे अपनी जागरूकता को अपने परिवेश में वापस आनंद के साथ ले आए। अपनी आँखें धीरे से खोलें और आप कैसा महसूस कर रहे हैं उस पर ध्यान केंद्रित करें। अपने मन और शरीर पर बिताए गए समय के लिए आभार व्यक्त करें। यह समापन आपको शांति और चेतना की भावना के साथ आनंद प्रदान करता हैं।

श्वास ध्यान के लाभ

  • हमें तनाव और चिंता से मुक्त करता हैं।
  • हमारी एकाग्रता को निरंतर बढ़ाता रहता हैं ।
  • भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद करता हैं।
  • अनिद्रा को दूर कर नींद लाने में सहायक हैं।
  • समस्त तंत्रों के ताल मेल में सहायता करता हैं।
  • शारीरिक संवेदनाओं के प्रति सहायता करता हैं।
  • आंतरिक शांति और व्यक्तिगत विकास करता हैं।













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