Tuesday, January 7, 2025

Unit I - Chapter 2.2 - योग का इतिहास-विकास

प्रस्तावना 

योग की परम्परा अत्यन्त प्राचीन हैं। इसमें कोई शंका नहीं हो सकती लेकिन यह कितनी प्राचीन हैं और उसको प्रारम्भ किसने किया और कब किया इन प्रश्नों का सीधा एक ही उत्तर देना शायद सम्भव नहीं होगा। परन्तु प्राचीन साहित्य में योग का प्रारम्भ किसने किया इसके संबंध में कई उल्लेख और प्रमाण मिलते हैं। जिनके माध्यम से हम योग के इतिहास को बेहतर तरीके से जान सकते हैं।

योग के कालखंड
योग के इतिहास को हम पांच काल खंडों में विभाजित कर सकते हैं।
  • प्रथम कालखंड - श्रुतियों का काल
  • द्वितीय कालखंड - दर्शनों का काल
  • तृतीय कालखंड - टीकाओं का काल
  • चतुर्थ कालखंड - भक्ति और हठ योग का काल 
  • पंचम कालखंड - आधुनिक काल

प्रथम कालखंड - श्रुतियों का काल

श्रुतियों का काल प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक का कहा गया हैं। श्रुतियों को मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाया जाता था। श्रुतियों में योग की अनेक संकल्पनाओं के स्पष्ट उल्लेख मिलते हैं। यजुर्वेद और अथर्ववेद में पंच वायु और प्राण का उल्लेख मिलता हैं। छान्दोग्योपनिषद् में भी प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान आदि प्राण ( वायु ) की व्याख्या की गई हैं।

द्वितीय कालखंड - दर्शनों का काल

इस काल में भारतीय दर्शन की अनेक शाखाओं के सिद्धांत एकत्रित रूप से सूत्र ग्रंथों में संग्रहित किए गए। प्रत्येक दर्शन ने अपने सिद्धांतों का मंडन तथा अन्य दर्शन का खंडन किया। योग सूत्र के अलावा भगवत गीता, योग वशिष्ठ आदि की रचना भी इसी समय में हुई। पुराण स्मृतियां जिनमे मंत्र, तंत्र, योग के सिद्धांत हैं इसी काल में लिखे गए।

तृतीय कालखंड - टीकाओं का काल

भारत वर्ष के इतिहास का यहां उत्कृष्ट समय था। विविध कला एवं विधाओं का समुचित विकास हुआ। योग पर अनेक ग्रंथ इस कालखंड में लिखे गए योग, उपनिषद, भक्ति ग्रंथ, स्त्रोत ग्रंथ इसी समय लिखे गए। स्मृतियों पुराण तथा तंत्र के अनेक प्राचीन ग्रंथ इस कालखंड में लिखे गए तथा योग के अनेक आचार्यों द्वारा उसका प्रचार एवं अनुसंधान का कार्य भी होता रहा।

चतुर्थ कालखंड - भक्ति और हठ योग काल

इस कालखंड को लगभग दसवीं शताब्दी से आरंभ होकर 19वीं शताब्दी के अंत तक मान सकते हैं। इस कालखंड में नाथ संप्रदाय का प्रचार प्रसार हुआ। शारीरिक क्रियाओं द्वारा मन को वश में करना यही उनकी विशेषता थी। भक्ति संप्रदाय के विकास का भी यही समय था। हठयोग के ग्रंथ जैसे हठ प्रदीपिका, घेरंड संहिता तथा तंत्र और मंत्र के अनेक ग्रंथों की रचना इस काल के मध्य में हुई।

पंचम कालखंड - आधुनिक काल

आधुनिक काल में महान योगाचार्यों जिनमे महर्षि रमण, रामकृष्‍ण परमहंस, परमहंस योगानंद, विवेकानंद, टी कृष्‍णमाचार्य, स्वामी कुवालयनंद, श्री योगेंद्र, श्री अरविंदो, महर्षि महेश योगी, आचार्य रजनीश, बी के एस आयंगर, स्‍वामी सत्‍येंद्र सरस्‍वती,बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकरआदि ने योग के विकास में योगदान दिया और योग का विस्तार कर उसे दुनिया में पहुंचाया।

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