Sunday, January 12, 2025

Unit I - Chapter 4.3- योग प्रथाएं - भक्ति योग

परिचय

भक्ति योग से आशय अपने इष्ट देवता के प्रति विस्वास रखना हैं। भजन, कीर्तन और सत्संग करना आदि आंतरिक विकास के साधन हैं। इसे 'भक्ति मार्ग' भी कहा जाता हैं। यह उन तीन मार्गों में से एक है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो सकती हैं। भक्तियोग अपने साधक से आत्मसंयम, अहिंसा, ईमानदारी, निश्छलता आदि गुणों की अपेक्षा करता हैं। ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति ही भक्ति योग हैं।

भक्ति योग के उद्देश्य
  • मन और हृदय को पूर्ण रूप से शुद्ध करना।
  • अंतरात्मा की आध्यात्मिक जागृति को बढ़ाना।
  • क्षमा, कृतज्ञता, संतोष जैसे गुणों को विकसित करना।
  • जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति देना।
  • जीवन मरण के चक्र से मुक्त कर परमात्मा से मिलाना।
  • विश्वास, निष्ठा, समर्पण की भावना का विकास करना।
  • कर्मों के बंधन से मुक्त कर आत्म उत्थान करना।
भक्ति योग का महत्व

चित्त की निर्मलता के बिना नि:स्वार्थ प्रेम सम्भव ही नहीं हैं। भक्ति योग उन लोगों के अनुकूल हैं जो भावनात्मक रूप से भक्तिभाव में लीन होते हैं। भक्ति योग के अधिकारी सभी स्त्री, पुरूष, बालक और वृद्ध इत्यादि हो सकते हैं। यह सर्वजन प्रिय योग पथ हैं। भगवान के प्रति उत्कृष्ट प्रेम विशेष का नाम ही भक्ति हैं और भक्ति के द्वारा मनुष्य भगवान से जुड़ता हैं और आशीर्वाद प्राप्त करता हैं।

भक्ति के भाव

हरिदास साहित्य में भक्ति के रूपों को पांच भावों में समझाया गया हैं। इसे पंचविधा भाव भी कहते हैं।
  • शांतभाव - प्रसन्नचित्त होकर अभिव्यक्त न करना।
  • दास्यभाव - ईश्वर की तन मन से सेवा करना।
  • वात्सल्यभाव - ईश्वर को ममता के साथ में देखना।
  • सखाभाव - ईश्वर को मित्र के रूप में देखना।
  • माधुर्यभाव - ईश्वर को प्रियतम के रूप में देखना।
भक्ति के रूप

श्रीमद भागवत में भक्ति का 9 रूपों में वर्णन किया गया हैं।
  • श्रवण - भगवान की कथा और महिमा सुनना।
  • कीर्तन - भगवान की स्तुतियों का गायन।
  • स्मरण - भगवान को याद करना।
  • पादसेवन - भगवान के चरणों की सेवा करना।
  • अर्चन - भगवान की पूजा करना।
  • वन्दन - भगवान की प्रार्थना करना।
  • दास्य - भगवान की सेवा करना।
  • सखा - भगवान को मित्र रूप में देखना।
  • आत्मनिवेदन-भगवान को पूर्ण रूप से समर्पित करना।

भक्ति योग की विशेषताएं
  • ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति का अहसास।
  • ईश्वर के साथ गहराई से और प्रेमपूर्ण संबंध।
  • अहंकार का प्रेम में विलीन होकर समाप्त होना।
  • आत्मा का सार्वभौमिक चेतना के साथ जुड़ जाना।
  • भजन, कीर्तन और सत्संग का आनंद लेना।
  • हृदय में प्रेम,करुणा,विनम्रता के गुण विकसित होना।
  • आंतरिक शक्ति और शांति की भावना का विकास।
भक्ति योग के लाभ
  • मन में सकारात्मक भावना का विकास होता हैं।
  • शारीरिक और मानसिक तनाव में राहत मिलती हैं।
  • ध्यान की क्षमता का विकास होता हैं।
  • आंतरिक शांति प्राप्त होकर संतुष्टि भाव आता हैं।
  • अंतरात्मा में परमात्मा का अनुभव होता हैं।
  • ईश्वर की निकटता का अनुभव होता हैं।
  • समस्त परेशानियों में उम्मीद का रास्ता दिखाई देता हैं।

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