Friday, January 17, 2025

Unit I - Chapter 6.2 - सूर्य नमस्कार

सूर्य नमस्कार का परिचय

सूर्य नमस्‍कार एक सरल योगाभ्यास हैं। जिसमें कुल 12 आसन शामिल रहते हैं। इन 12 आसनों को मंत्रों के साथ भी किया जाता हैं। सामूहिक सूर्य नमस्कार दिवस प्रतिवर्ष 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंति के उपलक्ष्य में मनाया जाता हैं। इनके बचपन का नाम नरेंद्र था। स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो शहर में जाकर पहली बार धर्म संसद को संबोधित किया था।

पहली स्थिति - प्रणामासन ( मंत्र  - ॐ मित्राय नम: )

सूर्य नमस्कार के 12 आसन में यह पहला आसन हैं। इसमें सबसे पहले दोनों पैरों को आपस में मिलाकर सीधे खड़े हो जाते हैं। और अपने दोनों हाथों को आपस में नमस्कार मुद्रा की तरह मिलाते हुए अपनी छाती से लगा कर रखते हैं। इसी अवस्‍था में रुककर कुछ देर के लिए लंबी गहरी सांस लेना हैं और छोड़ना हैं।

दूसरी स्थिति - हस्‍तउत्तानासन ( मंत्र  - ॐ रवये नम: )

इस स्तिथि में अपने दोनों हाथों को सांस भरते हुए सामने से ऊपर उठा कर पीछे की ओर ले जाना हैं। इसी के साथ अपने शरीर को भी कमर से पीछे की ओर झुकाना हैं। ध्‍यान रखना है कि इस अवस्था में दोनों हाथ दोनों कानों से सटे रहें। अब कोशिश करें कि अपनी गर्दन को भी पीछे की तरफ झुका कर पीछे की ओर देखने का प्रयास करें।

तीसरी स्थिति - पादहस्‍तासन ( मंत्र  - ॐ सूर्याय नम: )

अब तीसरी स्थिति में आने के लिए अपने दोनों हाथों को पीछे से आगे की ओर लेकर आना हैं। साथ ही धीरे धीरे सांस भी छोड़ते रहना हैं। इसी तरह से अपने हाथों को अपने पैर के पंजों तक लेकर जाने का प्रयास करना हैं। ध्‍यान रखना हैं कि इस दौरान घुटने मुड़े हुए ना हों। अब अपने हाथों को अपने पंजों से मिलाने का प्रयास करना हैं।

चौथी स्थिति - अश्‍व संचालन आसन ( मंत्र  - ॐ भानवे नम: )

इस स्थिति में अब सबसे पहले अपने बाएं पैर को पीछे की ओर लेकर जाए और अपने दाएं पैर को आगे रखते हुए घुटने को छाती से लगाने का प्रयास करे। इसके बाद अपनी गर्दन पीछे की ओर ले जाए और कोशिश करें कि कुछ समय के लिए अपनी गर्दन को ऊपर की ओर ही रखें। इस तरह से पुरे शरीर में लचीलापन आ जाएगा।

पांचवीं स्थिति - दंडासन मंत्र  - ॐ खगाय नम: )

इस स्थिति में आने के लिए अब अपने शरीर में गहरी सांस भरें और अपने दाएं पैर को भी पीछे लेकर जाएं। इसके बाद अपने हाथों और पंजों के बल अपने शरीर को ऊपर उठाने का प्रयास करे। अब अपनी हथेलियों पर दबाव देकर कुछ समय तक इसी अवस्था में शरीर को ऊपर उठाए रखें। जिससे बाजुओं को मजबूती मिलेगी।

छटवीं स्थिति -अष्‍टांग नमस्कार आसन मंत्र  - ॐ पूष्णे नम: )

इस स्थिति में आने के लिए पेट के बल जमीन पर लेट जाना हैं। इसके बाद अपने दोनों घुटनें, दोनों कंधे, छाती और अपनी ठुड्डी को जमीन से लगाना हैं और अपने कुल्‍हों को ऊपर उठाना हैं। ध्‍यान यह रखना है कि इस स्थिति के दौरान आपके सिर्फ कुल्‍हे ही ऊपर उठने चाहिए। आगे का शरीर व बाकी का शरीर जमीन पर लगा रहना चाहिए।

सातवीं स्थिति - भुजंग आसन मंत्र  - ॐ हिरण्यगर्भाय नमः )

इस स्थिति में अपने कुल्‍हों को फिर से नीचे लाते हुए अपने हाथों के बल पर अपने शरीर के आगे के हिस्‍से को ऊपर उठाना हैं। इसे आप जितना उठा सकें उतनी ऊपर तक लेकर जाना हैं। इसमें आपकी कमर के ऊपर का हिस्‍सा ही ऊपर उठना चाहिए। बाकी का शरीर जमीन से लगा होना चाहिए। और आसमान की ओर देखने का प्रयास करे।

आठवीं स्थिति - पर्वत आसन मंत्र  - ॐ मरिचये नम: )

इस स्थिति के लिए आगे के भाग को नीचे लाए और अपने पैरों और हाथों को जमीन पर ही रखते हुए दोनों को दबाव देकर केवल अपने कूल्‍हों को ऊपर की तरफ ले जाना हैं। इस दौरान कोशिश करना चाहिए कि हमारा ध्यान अपनी नाभि की ओर हो। जितना अपने कूल्‍हों को ऊपर उठा सके उतना ही ऊपर उठाने का प्रयास करना चाहिए।

नवीं स्थिति - अश्व संचालन आसन मंत्र  - ॐ आदित्याय नम: )

इस स्थिति में अपने दाएं पैर को पीछे रखे और बाएं पैर को आगे की ओर लेकर आए। बाएं पैर को आगे रखते हुए घुटने को छाती से लगाने का प्रयास करे। इसके बाद अपनी गर्दन पीछे की ओर ले जाए और कोशिश करें कि कुछ समय के लिए अपनी गर्दन को ऊपर की ओर ही रखें। यह स्थिति ठीक चौथी स्थिति के जैसी ही होगी।

दसवीं स्थिति - पाद हस्तासन ( मंत्र - ॐ सवित्रे नमः )

यह स्थिति तीसरी स्थिति जैसी ही हैं। इस स्थिति के लिए अब अपने बाएं पैर को भी आगे की ओर लेकर आए और घुटनों को बिलकुल सीधा रखते हुए दोनों हाथों से अपने पैरों के पंजों को पकड़ने का प्रयास करे। इसी स्थिति में कुछ देर रुके रहे और धीरे धीरे सांस भी छोड़ते जाएं । इस तरह से अपने हाथों को पंजों से मिलाने का प्रयास करे।

ग्यारहवीं स्थिति - हस्‍तउत्तानासन मंत्र - ॐ अर्काय नमः )

यह स्थिति दूसरी स्थिति जैसी ही हैं। इस स्थिति के लिए अपने हाथों को सामने से ऊपर की तरफ उठाते हुए पीछे की तरफ लेकर जाना होता हैं। साथ ही अपने शरीर को भी धीरे धीरे कमर से पीछे की ले जाए। शरीर को पीछे की तरफ ले जाते समय इस बात का ध्‍यान रखें कि आप कमर के ऊपर का हिस्‍सा ही पीछे की तरफ लेकर जाएं।

बारहवीं स्थिति - प्रणामासन मंत्र - ॐ भास्कराय नम: )

यह स्थिति प्रथम आसन के जैसी ही हैं। जो सबसे पहले किया गया था। पीछे से हाथों को पुनः सीने के पास में लेकर आ जाए और सीधे खड़े हो जाए । अब अपने हाथों को इस तरह से जोड़ना हैं जैसे हम लोग प्रार्थना के लिए खड़े होते हैं। इस अवस्था में रुके रहे और लगातार गहरी सांस अंदर और बाहर लेते रहे।

सूर्य नमस्‍कार के लाभ

सूर्य नमस्‍कार के लाभ निम्नलिखित हैं -
  • शरीर के विषैले तत्वों को बाहर करता हैं।
  • पाचन तंत्र को बेहतर करता हैं।
  • रीढ़ की हड्डी को मजबूत करता हैं।
  • चिंता और तनाव से मुक्ति दिलाता हैं।
  • चेहरे पर निखार लाकर सुंदर बनाता हैं।
  • शरीर में लचीलापन लाता हैं।
  • मासिक धर्म को नियमित करता हैं।
सूर्य नमस्कार की सावधानियां

सूर्य नमस्‍कार की सावधानियां निम्नलिखित हैं -
  • गर्भवती महिलाओं को नहीं करना चाहिए।
  • रक्‍तचाप की अधिकता होने पर नही करना चाहिए।
  • पीठ दर्द की समस्‍या होने पर नही करना चाहिए।
  • मासिक धर्म के समय नही करना चाहिए।
  • सूर्य नमस्कार में आसनों को सही क्रम से करें।
  • सूर्य नमस्कार में जल्दबाजी बिलकुल भी न करें।

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