परिचय
अनुभागीय श्वास फेफड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ाने का कार्य करती हैं। इसके माध्यम से सामान्य श्वसन वाले व्यक्ति भी बिना किसी अत्यधिक परिश्रम के अपने फेफड़ो की कार्यक्षमता को बढ़ा सकते हैं। ठीक इसी प्रकार से कम श्वसन लेने वाले व्यक्ति या श्वसन संबंधित बीमारियों से ग्रस्त व्यक्ति भी केवल थोड़े से प्रयास से अपने फेफड़ों की कार्य क्षमता को कई गुना बढ़ा सकते हैं।
अनुभागीय श्वास की विधि
सबसे पहले लंबी और गहरी श्वास लेते हुए वायु को पेट में भरते हैं, फिर सीने में भरते हैं और अंत में हंसलियों या कंधे की मांसपेशियों, अस्थियों में भरते हैं। जब श्वास छोड़ते हैं उस समय सबसे पहले कंधे की मांसपेशियों, अस्थियों से वायु निकालते हैं फिर सीने या पसलियों में भरी हुई वायु को और अंत में पेट या उदर में भरी वायु को बाहर निकाला जाता हैं। इस तरह से ली गई सम्पूर्ण वायु को निकालते हैं।
अनुभागीय श्वास के प्रकार
अनुभागीय श्वास को तीन भागों में बांट सकते हैं-
- पेट या उदर श्वास ( डायाफ्रमैटिक ब्रीदिंग )
- वक्षस्थलीय श्वास ( थोरैसिक ब्रीदिंग )
- हंसली श्वास ( क्लैविक्युलर ब्रीदिंग )
पेट या उदर श्वसन
जैसा कि नाम से पता चलता हैं कि पेट की दीवार की माँसपेशियों का उपयोग करते हुए पेट या उदर श्वास ली जाती हैं। इस प्रकार की श्वास में डायाफ्राम का उपयोग होता हैं। डायाफ्राम हमारे पेट और सीने को बांटने वाली एक माँसपेशी हैं। यह माँसपेशी पेट व सीने को अलग-अलग करती हैं। यह एक पतले पर्दे के समान होती है। जो कि सांस लेने पर नीचे की ओर जाती हैं।
वक्षस्थलीय श्वास
वक्षस्थलीय श्वास में पूर्णतः हृदय की पसिलयों को आधार बनाकर श्वसन क्रिया की जाती हैं। पसलियों के पिंजर को सिकोड़कर या फैलाकर श्वसन किया जाता हैं। वक्षस्थलीय श्वास लेते समय पसलियों के माध्यम से श्वसन को लंबा और गहरा किया जाता हैं। इस श्वसन प्रक्रिया से हम पर्याप्त श्वास लेने में सफल होते हैं। और जिसके कारण फेफड़ो की कार्य क्षमता बढ़ती हैं।
हंसली श्वास
इस प्रकार की श्वसन क्रिया में मुख्य रूप से कंधों और कॉलर बोन (क्लैविक्स) को ऊपर उठाकर श्वास ली जाती हैं और श्वास छोड़ने के दौरान पेट के साथ-साथ छाती सिकोड़कर वायु को छाती में खींचा जाता हैं। इस श्वसन में हवा की अधिकतम मात्रा अल्प समय के लिए खींची जाती हैं। यह श्वसन क्रिया निरंतर अभ्यास के बाद आदत में आ जाती हैं। जिससे हम पूर्ण श्वांस का लाभ ले सकते हैं।
श्वास लेने का अभ्यास
श्वास लेने का अभ्यास कैसे करे इसके लिए शुरूआत में श्वास लेने का सही तरीका याद नहीं रहता हैं तो बेहतर हैं कि अलार्म लगाकर हर आधे घंटे में अपनी श्वास पर गौर करें और 3-4 मिनट के लिए सही तरीके से श्वास लेने का अभ्यास भी करें। अगर आप 3-4 महीने तक लगातार इस श्वसन प्रक्रिया का अभ्यास कर पाते हैं तो सही तरीके से श्वास लेना आपकी आदत में शामिल हो जाएगा।
श्वास की संख्या
ऐसा कोई नियम तो नहीं है कि हमें एक मिनट के अंदर कितनी बार श्वास लेना चाहिए, लेकिन मोटे तौर पर देखा जाए तो एक श्वास 4 पल्स रेट के बराबर होती है। यानी किसी भी सामान्य व्यक्ति का पल्स रेट एक मिनट में करीब 72 होता हैं। ऐसे में उसकी श्वास एक मिनट में 15-18 हो सकती हैं। यह श्वास की संख्या कभी कम तो कभी ज्यादा भी हो सकती हैं।
धीमी और गहरी सांस के लाभ
- हृदय और फेफड़ों की गतिविधियाँ बेहतर होती हैं।
- ब्लड प्रेशर को सामान्य रखने में मदद मिलती हैं।
- शरीर को अधिक ऑक्सीजन मिलती हैं।
- शरीर के उर्जा का स्तर बेहतर होता हैं।
- मन शांत होकर प्रसन्न रहता हैं।
- गुस्सा और तनाव कम होता हैं।
- मन पर नियंत्रण होकर एकाग्रता बढ़ती हैं।
तेज श्वास के नुकसान
- शरीर में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाना।
- तनाव, पैनिक अटैक जैसी बीमारियों की समस्या।
- ह्रदय की सामान्य गति का तालमेल बिगड़ना।
- साँस लेने में रुकावट और परेशानी का अनुभव करना।
- सामान्य रक्तचाप का स्तर अधिक हो जाना।
- फेफड़ो की गतिविधि का ठीक से कार्य न करना ।
- कार्बन डाई आक्साइड की कम मात्रा बाहर निकलना ।
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