परिचय
सामान्य व्यक्ति जीवन भर सांस को लेना और छोड़ने का ही कार्य लगातार करता रहता हैं। किन्तु योग के अंतर्गत प्राणायाम करते समय प्रमुख रूप से तीन क्रियाएं की जाती हैं-सांस को लेना, सांस को रोकना और सांस को छोड़ना। इन क्रियाओं को क्रमशः पूरक, कुम्भक और रेचक कहा जाता हैं। हठ योगीयों ने अपने ग्रंथों में इन्हें अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति भी कहा हैं।
पूरक
जिस अवस्था में हम अपनी नासिका से सांस को अंदर की ओर लेते है उसे पूरक कहा जाता हैं। पूरक हमेशा लम्बा और धीमा करना चाहिए ताकि हम अपनी आने वाली श्वास को ठीक प्रकार से महसूस कर सके। पूरक करते समय हमें अपना पूरा ध्यान केवल अपनी आने वाली श्वास पर रखना चाहिए। जितना अधिक पूरक हम करेगें उतनी ही अधिक मात्रा में ऑक्सीजन हमारे शरीर में जाएगी।
कुंभक
जिस अवस्था में हम ली गई सांस को अंदर ही रोक दे या बाहर की ओर छोड़ी गई सांस को बाहर रोक कर लेने की कोशिश न करे उसे ही कुंभक कहा जाता हैं। कुंभक हमेशा अपनी क्षमता अनुसार ही करना चाहिए और किसी कुशल योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही करे। प्राणायाम के एक सही अनुपात के अनुसार कुंभक हमेशा पूरक अर्थात ली गई सांस का चार गुना होता हैं।
कुंभक के प्रकार
योगियों ने कुंभक के दो प्रकार बताए हैं -
अंत: कुम्भक:-
नासिका द्वारा ली गई श्वास को क्षमतानुसार अंदर रोकने की क्रिया को अंत: कुम्भक कहते हैं।
बाह्य कुम्भक:-
नासिका द्वारा छोड़ी गई श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाह्य कुंभक कहते हैं।
रेचक
जिस अवस्था में हम अपनी नासिका द्वारा ली गई सांस को बाहर की ओर छोड़ते हैं उसे रेचक कहा जाता हैं। रेचक हमेशा लम्बा और धीमा करना चाहिए साथ ही पूरक का दुगुना होना चाहिए ताकि अधिक से अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड अपनी श्वास के माध्यम से शरीर से बाहर कर सके। रेचक करते समय हमें अपना पूरा ध्यान केवल अपनी बाहर जाने वाली श्वास पर ही रखना चाहिए।
पूरक, कुम्भक और रेचक में संबंध
पूरक का मतलब होता है सांस लेना, कुंभक का मतलब होता हैं सांस को रोकना और रेचक का मतलब होता हैं। सांस को छोड़ना। योग ग्रंथों के अनुसार प्राणायाम के दौरान पूरक, कुंभक और रेचक का एक सही अनुपात 1:4:2 होना चाहिए। इसका मतलब यह है कि अगर आप 10 सेकंड तक सांस लेते हैं तो 40 सेकंड तक रोक कर रखे और 20 सेकंड तक सांस को छोड़ने का प्रयास करे।
पूरक, कुम्भक और रेचक के लाभ
- मानसिक और शारीरिक रुप से मजूबत करता हैं।
- फेफड़ो की कार्य क्षमता को बढाता हैं।
- शरीर में ऑक्सीजन की कमी नहीं होने देता हैं।
- नकारात्मक से सकारात्मक चिंतन की ओर बढ़ते हैं।
- शरीर का रक्तचाप संतुलित करता हैं।
- शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता हैं।
- भूख-प्यास के नियंत्रण में मदद करता हैं।
- प्रारंभिक अवस्था में योग विशेषज्ञ की सलाह लें।
- सांस संबंधित बीमारियों में कुम्भक न लगाएं।
- अभ्यास के प्रारंभ में भी कुंभक नहीं करना चाहिए।
- सर्वप्रथम पूरक और रेचक का सही अभ्यास करे।
- गंभीर बीमारी में चिकित्सक की सलाह अवश्य ले।
- अभ्यस्त हो जाने पर सही अनुपात का पालन करे।
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