परिचय
बंध का शाब्दिक अर्थ होता हैं बांधना अर्थात किसी अंग विशेष पर उनकी क्रियाओं को रोकना या संकुचित करना। बंध एक प्रकार की आंतरिक शारीरिक प्रक्रिया हैं जिसके द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों तथा नाड़ियो को नियंत्रित किया जाता हैं। बंध के माध्यम से आंतरिक अंगों की मालिश की जाती हैं जिसके कारण उन अंगों की कार्यक्षमता बढ़ती हैं और शरीर का स्वास्थ्य बेहतर होता हैं।
बंध का अर्थ और परिभाषा
बंध का अर्थ होता हैं बांधना, रोकना, संकुचित करना, बंद करना या नियंत्रित करना। वह क्रिया जिसके द्वारा किसी अंग विशेष को बांधकर उस पर आने जाने वाली संवेदनाओ को रोक कर लक्ष्य विशेष की ओर भेजा जाता हैं वह क्रिया बंध कहलाती हैं। बंध के द्वारा आंतरिक अंगों की शुद्धि की जाती हैं। साथ ही बंध के प्रयोग से प्राण को भी नियंत्रित किया जा सकता हैं।
बंध का महत्व
बंध लगाने पर शरीर के कुछ निश्चित अंगो को बड़ी सतर्कता से संकुचित किया जाता हैं अथवा बांधा जाता हैं। जिसके कारण शरीर पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हैं। विभिन्न अंगो, मांसपेशियों और नाड़ियो की मालिश होने से वे क्रियाशील होते हैं और इन पर नियंत्रण स्थापित होता हैं।बंध के अभ्यास से प्राण शक्ति की सूक्ष्म धाराओं को एक विशिष्ट लक्ष्य की ओर भेजा जा सकता हैं।
बंध का उद्देश्य
बन्ध का उद्देश्य साधक की बाह्यवृत्ति को समाप्त कर अन्तःवृत्ति को जगाना हैं अर्थात बन्ध हमें भौतिक जगत से अंतर्जगत की ओर ले जाता हैं। जिससे हम संसार से विमुख होकर साधना पथ पर आगे बढ़ते जाते हैं। बंध के अभ्यास से साधक अपने लक्ष्य प्राप्ति के प्रति सजग हो जाता हैं। बन्धों का अभ्यास साधक को एकाग्रता प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता हैं।
बंध के प्रकार
बंध चार प्रकार के होते हैं -
- जालंधर बंध
- उड्डियान बंध
- मूल बंध
- महा बंध
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