परिचय
भ्रामरी शब्द की उत्पत्ति ‘भ्रमर’ से हुई है जिसका अर्थ होता हैं भँवरा या मधुमक्खी जैसी गुनगुनाने वाली ध्वनि। इस प्राणायाम का अभ्यास करते समय नाक से एक गुनगुनाने वाली ध्वनि उत्पन्न होती हैं, यह ध्वनि एक गुनगुनाने वाले भंवरे या मधुमक्खी की गूंज से मिलती-जुलती होती हैं, इसलिए इसे भ्रामरी प्राणायाम कहा जाता हैं। यह निराशा और चिंता से मुक्त करने के लिए एक उत्तम प्राणायाम हैं।
भ्रामरी प्राणायाम की विधि
इस प्राणायाम में सबसे पहले पद्मासन या किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठें। आंखों को बंद करें। अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखे और अपनी तर्जनी उंगली को कानों पर रखकर उन्हें बंद करे। अब अपनी नाक से सांस को बाहर छोड़ते हुए भंवरे की तरह गुंजन करें। गुंजन धीरे-धीरे करते हुए तेजी के साथ करे। इस प्राणायाम में भंवरे के गुंजन की जगह ॐ का उच्चारण भी कर सकते हैं।
भ्रामरी प्राणायाम के लाभ
- मस्तिष्क को प्रसन्न एवं शांत रखता हैं।
- तनाव एवं घबराहट से राहत दिलाता हैं।
- क्रोध को कम करने में अहम भूमिका निभाता हैं।
- चिंता को दूर करने में यह महत्वपूर्ण हैं।
- डिप्रेशन के लिए बेहद जरूरी प्राणायाम हैं।
- मन को शांत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं।
- प्राणायाम करने का समय धीरे-धीरे बढ़ाये।
- गुंजन करते समय मुंह को बंद रखना चाहिए।
- चेहरे पर दबाव नहीं डालना चाहिए।
- कान में संक्रमण होने पर नहीं करना चाहिए।
- प्राणायाम के समय मुंह बंद ही रखे ।
- गुंजन को स्थिर और सहज रखे।
No comments:
Post a Comment