परिचय
प्राचीन धर्म ग्रन्थों में मंत्र को विस्तार पूर्वक बताया गया हैं।भारतीय संस्कृति में मंत्र की परंपरा पुरातन काल से ही चली आ रही हैं। प्राचीन वेद ग्रंथों में सहस्त्रों मंत्र मिलते हैं। जो उद्देश्य पूर्ति का उल्लेख करते हैं। मंत्र द्वारा आत्मा, देह और समस्त वातावरण शुद्ध होता हैं। इन मंत्रों में असीम शक्ति होती हैं। इन मंत्र जापों के द्वारा परेशानियों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती हैं।
मंत्र का अर्थ
मंत्र मन और मस्तिष्क में बनने वाले विचार और उसकी बार-बार पुनरावृत्ति होने से बनने वाली मंत्रणा या चिन्तन-मनन से स्पंदित एक लक्ष्य की ओर अग्रसित होते हुए प्रबल मानसिक प्रवाह को बोलते हैं। मंत्र का शाब्दिक अर्थ है- मंत्रणा, गूढ़ या गोपनीय, इसके अतिरिक्त मनन भी एक अर्थ हैं। ‘मनानात् त्रायते इति मन्त्रः’ – अर्थात् मन पर जिससे नियंत्रण किया जा सके उसे मंत्र कहा जाता हैं।
मंत्र पाठ का उद्देश्य
मंत्र का उच्चारण करने से मन और मस्तिष्क दोनों ही एक ही दिशा और लक्ष्य की ओर कार्य करने लगते हैं। और यही मंत्रों का उद्देश्य हैं कि मंत्र के उच्चारण मात्र से मन को आत्म शांति का अनुभव होता हैं। साथ ही कुछ समय के लिए हम अध्यात्म से जुड़कर आत्म निरिक्षण भी कर पाते हैं। मंत्रों का उद्देश्य हमें गलत मार्ग से बचाकर सही मार्ग की ओर अग्रसर करना हैं।
मंत्र पाठ का महत्व
मंत्रो का उच्चारण पूजन, विवाह समारोह, मंगल कार्य से लेकर कई शुभ कार्यो में पंडितों द्वारा किया जाता हैं। ग्रहों और देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मंत्रों का जाप किया जाता हैं। साथ ही यह उनसे आशीर्वाद मांगने का भी एक तरीका हैं। मंत्र सर्वोच्च शक्ति से जुड़ने के लिए हमें अपने विचारों को केंद्रित करने में सहायता प्रदान करता हैं। मंत्रों का उच्चारण हमारी चेतना को जागृत करता हैं।
मंत्र पाठ के लाभ
- मंत्र पाठ हमारी प्राण उर्जा को जागृत करते हैं।
- मंत्र पाठ के द्वारा शक्ति, शांति, आयु बढ़ती हैं।
- मंत्र पाठ के द्वारा मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ती हैं।
- मंत्र पाठ करने से कर्म बंधनों से मुक्ति मिलाती हैं।
- मंत्र पाठ से ईश्वर जगत का बोध होता हैं।
- मंत्र पाठ शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर होते हैं।
- मंत्र पाठ में उच्चारण शुद्ध और सही से करना चाहिए।
- मंत्र पाठ के समय मन में दृढ विश्वास रखना चाहिए।
- तन एवं मन में स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।
- मन पाठ को एकाग्रचित कर स्मरण करना चाहिए।
- आसन पर बैठकर ही मंत्र साधना करनी चाहिए
- मंत्र का जाप एकांत में और शांति से करना चाहिए
- मंत्र का जाप सुबह या शाम को करना चाहिए
प्रार्थना
ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।
|| ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ||
हमारी साथ-साथ रक्षा करें, हमारा साथ-साथ पालन करें, हम दोनों को साथ-साथ पराक्रमी बनाएं हम दोनों का जो
पढ़ा हुआ शास्त्र हैं, वो तेजस्वी हो हम गुरु और शिष्य एक दूसरे से द्वेष न करें। ॐ शांति, शांति, शांति
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ।।
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