Sunday, March 2, 2025

Unit III - Chapter 2- मंत्रों का पाठ मंगलाचरण और प्रार्थना में

परिचय

प्राचीन धर्म ग्रन्थों में मंत्र को विस्तार पूर्वक बताया गया हैं।भारतीय संस्कृति में मंत्र की परंपरा पुरातन काल से ही चली आ रही हैं। प्राचीन वेद ग्रंथों में सहस्त्रों मंत्र मिलते हैं। जो उद्देश्य पूर्ति का उल्लेख करते हैं। मंत्र द्वारा आत्मा, देह और समस्त वातावरण शुद्ध होता हैं। इन मंत्रों में असीम शक्ति होती हैं। इन मंत्र जापों के द्वारा परेशानियों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती हैं।

मंत्र का अर्थ

मंत्र मन और मस्तिष्क में बनने वाले विचार और उसकी बार-बार पुनरावृत्ति होने से बनने वाली मंत्रणा या चिन्तन-मनन से स्पंदित एक लक्ष्य की ओर अग्रसित होते हुए प्रबल मानसिक प्रवाह को बोलते हैं। मंत्र का शाब्दिक अर्थ है- मंत्रणा, गूढ़ या गोपनीय, इसके अतिरिक्त मनन भी एक अर्थ हैं। ‘मनानात् त्रायते इति मन्त्रः’ – अर्थात् मन पर जिससे नियंत्रण किया जा सके उसे मंत्र कहा जाता हैं।

मंत्र पाठ का उद्देश्य

मंत्र का उच्चारण करने से मन और मस्तिष्क दोनों ही एक ही दिशा और लक्ष्य की ओर कार्य करने लगते हैं। और यही मंत्रों का उद्देश्य हैं कि मंत्र के उच्चारण मात्र से मन को आत्म शांति का अनुभव होता हैं। साथ ही कुछ समय के लिए हम अध्यात्म से जुड़कर आत्म निरिक्षण भी कर पाते हैं। मंत्रों का उद्देश्य हमें गलत मार्ग से बचाकर सही मार्ग की ओर अग्रसर करना हैं।

मंत्र पाठ का महत्व

मंत्रो का उच्चारण पूजन, विवाह समारोह, मंगल कार्य से लेकर कई शुभ कार्यो में पंडितों द्वारा किया जाता हैं। ग्रहों और देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मंत्रों का जाप किया जाता हैं। साथ ही यह उनसे आशीर्वाद मांगने का भी एक तरीका हैं। मंत्र सर्वोच्च शक्ति से जुड़ने के लिए हमें अपने विचारों को केंद्रित करने में सहायता प्रदान करता हैं। मंत्रों का उच्चारण हमारी चेतना को जागृत करता हैं।

मंत्र पाठ के लाभ

  • मंत्र पाठ हमारी प्राण उर्जा को जागृत करते हैं।
  • मंत्र पाठ के द्वारा शक्ति, शांति, आयु बढ़ती हैं।
  • मंत्र पाठ के द्वारा मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ती हैं।
  • मंत्र पाठ करने से कर्म बंधनों से मुक्ति मिलाती हैं।
  • मंत्र पाठ से ईश्वर जगत का बोध होता हैं।
  • मंत्र पाठ शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर होते हैं।
मंत्र पाठ की सावधानियां
  • मंत्र पाठ में उच्चारण शुद्ध और सही से करना चाहिए।
  • मंत्र पाठ के समय मन में दृढ विश्वास रखना चाहिए।
  • तन एवं मन में स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।
  • मन पाठ को एकाग्रचित कर स्मरण करना चाहिए।
  • आसन पर बैठकर ही मंत्र साधना करनी चाहिए
  • मंत्र का जाप एकांत में और शांति से करना चाहिए
  • मंत्र का जाप सुबह या शाम को करना चाहिए
गणेश मंत्र
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभा 

निर्विघ्नं कुरुमेदेव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

श्री गणेश को नमस्कार, आपकी घुमावदार सूंड (वक्र-तुंड) और विशाल शरीर (महा-काया) लाखों सूर्यों (सूर्य-कोटि) की तरह चमकती हैं और सभी पर अपना आशीर्वाद (सम-प्रभा) बरसाती हैं। देवों के स्वामी गणेश (कुरुमे-देवा), कृपया मेरी सभी गतिविधियों और प्रयासों (सर्व-कार्येषु) में हमेशा (सर्व) और हमेशा के लिए (सर्वदा) मेरी सभी बाधाओं (निर्-विघ्नम) को दूर करे।

महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्

हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो सुगंधित हैं और हमारा पोषण करते हैं। जैसे फल शाखा

 के बंधन से मुक्त हो जाता है वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।

गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं।

भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्॥

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में

 धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

पतंजलि मंत्र
योगेन चित्तस्य पदेन वाचां । मलं शरीरस्य च वैद्यकेन ॥

योऽपाकरोतं प्रवरं मुनीनां । पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि ॥

योग से चित्त का, पद (व्याकरण) से वाणी का व वैद्यक से शरीर का मल, जिन्होंने दूर किया, उन मुनि श्रेष्ठ पतंजलि को मैं अंजलि बद्ध होकर नमस्कार करता हूँ।

प्रार्थना

ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । 

तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । 

|| ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ||

हमारी साथ-साथ रक्षा करें, हमारा साथ-साथ पालन करें, हम दोनों को साथ-साथ पराक्रमी बनाएं हम दोनों का जो

 पढ़ा हुआ शास्त्र हैं, वो तेजस्वी हो हम गुरु और शिष्य एक दूसरे से द्वेष न करें। ॐ शांति, शांति, शांति

प्रार्थना
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधु च सखा त्वमेव 

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ।।

तुम ही माता हो, तुम ही पिता हो, तुम ही बंधु हो और तुम ही सखा हो। 

तुम ही विद्या हो, तुम ही धन हो, तुम ही सब कुछ हो, मेरे देव।


शांति पाठ
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः ।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग् भवेत् ।

|| ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ||

सब सुखी रहे, सब निरोग रहे,

सब का कल्याण हो, कोई भी दुखी न रहे

ॐ शांति, शांति, शांति

शांति पाठ

असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय ।

मृत्योर्माऽमृतं गमय ।

|| ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ||

हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो,

हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो,

हमें मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो

ॐ शांति, शांति, शांति

गीता श्लोक

योगस्थ: कुरु कर्माणि संगं त्यक्तवा धनंन्जय।

सिद्धसिद्धो: समं भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

हे धनंजय, आसक्ति का त्याग करते हुए, सफलता एवं असफलता में समान भाव से कर्म करने से योग की प्राप्ति होती हैं। यह जो समता का भाव हैं, वह निष्काम होना चाहिए। सफलता मिलने पर प्रसन्नता एवं असफलता मिलने पर निराशा का भाव नहीं होने पर ही समता उत्पन्न होती हैं और यही समता योग कहलाती हैं।

गीता श्लोक

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।

तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥

जो व्यक्ति बुद्धि (सामर्थ्य) से युक्त होता हैं, वह अच्छे और बुरे फल की चिंता छोड़ देता हैं इसलिए  योग से कर्मों में

 कुशलता आती है। (समता या निष्काम कर्म) में संलग्न हो जाओ

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