परिचय
मौन सर्वार्थ साधनम् यानी मौन रहने से सभी कार्य पूर्ण होते हैं। मौन ही जीवन का स्रोत हैं। मौन दैविय अभिव्यक्ति हैं। जब लोग क्रोध में होते हैं तो फिर मौन ही उन्हें शांति प्रदान करता हैं और कोई जब दुखी होता हैं। तब भी मौन की शरण में जाता हैं। इसलिए कह सकते हैं कि मौन साधना जीवन को संचालित करने का मूल मंत्र हैं। मौन के माध्यम से हम आंतरिक शक्ति को पा सकते हैं।
अंतर मौन का अर्थ
इन्द्रियों से मन को हटाकर मन को स्थिर रखना, आत्मतत्व में लीन होकर अध्यात्म विचार करना अंत: मौन हैं। ऋषि-मुनियों ने अंत: मौन धारण किया। उनके अनुसार आत्मिक दृष्टि से मौन महत्वपूर्ण साधना हैं। अंतः मौन साधना चित्त-वृत्तियों को बिखरने से बचाती हैं। और मन को आत्मचिंतन में लगाकर सुखद शांति मिल सकती हैं। क्योकि इन्द्रियां बाहरी सुख की तलाश करती हैं और मौन उन्हें रोकता हैं।
अंतर मौन का उद्देश्य
अंतर मौन साधना का उद्देश्य आतंरिक ऊर्जा का संचय कर स्वयं से स्वयं को जोड़ना हैं। मौन साधना मन को ही नहीं, अंतरात्मा को भी स्फूर्ति और नवचेतना प्रदान करती हैं। मौन अवस्था अतीत के अनुभवों को एक नए सूत्र में पिरोकर व्यक्ति के अच्छे विचारों को सृजित करती हैं। इससे व्यक्ति स्वयं को अध्यात्म और ईश्वर से जोड़ता हैं और अंतःकरण में निखार प्राप्त करता हैं।
अंतर मौन का लक्ष्य
सांसारिक परेशानियों से मानसिक शांति मिलती हैं। और कई तरह की बीमारियाँ जैसे उच्च रक्तचाप, सरदर्द और हृदयरोग इत्यादि में मौन इन सबके लिए एक औषधि का कार्य करता हैं। मौन ही हैं जो हमारे चिंतन को विराट स्वरूप प्रदान करता हैं। अंतः मौन के द्वारा ही मन के विचारों को विचलित होने से बचा सकते हैं। उसे स्थिर करके आत्मिक शांति और बल प्राप्त कर सकते हैं।
अंतर मौन का महत्व
साधना काल में मौन का विशेष महत्व बताया गया हैं। मौन रहकर किया गया जप, ध्यान, साधना अधिक प्रभावशाली सिद्ध होता हैं। मौन रहकर ही आत्मोन्मुख होकर आत्म-दर्शन संभव हैं और अन्तर्मुख हुए बिना आध्यात्मिक प्रगति करना लगभग असंभव हैं। इसके अलावा शक्ति संचय करने के लिए भी मौन एक उत्तम क्रिया है। यह अंतरात्मा को देखने की क्रिया हैं।
अंतर मौन का लाभ
- समस्त इन्द्रियां कार्य से विमुख होकर शांत रहती हैं।
- स्वाध्याय और मनन क्रिया विकसित होती हैं।
- परेशानियों के हल खोजने में सहायता मिलती हैं।
- श्वसन तंत्र और प्राणायाम में सहायता प्राप्त होती हैं।
- आत्म साक्षात्कार का अनुभव कर सकते हैं।
- अध्यात्म और ईश्वर की सत्ता से जुड़ सकते हैं।
- शारीरिक और मानसिक उर्जा की बचत होती हैं।
- सर्वप्रथम स्वयं की वाणी पर नियंत्रण करना सीखे।
- मन के अंदर नकारात्मक विचारों को न आने दे।
- इंद्रियों की चंचलता को रोकने का प्रयास करे।
- मन में आने वाले विचारों को नियंत्रित करे।
- अंतर मौन के पहले ध्यान का अभ्यास करे।
- राग द्वेष जैसी भावनाओं को छोड़ने का प्रयास करे।
- बाह्य जगत की अपेक्षा अंतर्जगत में अधिक रहे।
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